इनकी दशा फ़िरऔनियों तथा उन लोगों जैसी हुई, जो इनसे पहले थे, उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठला दिया, तो हमने उन्हें उनके पापों के कारण ध्वस्त कर दिया तथा फ़िरऔनियों को डुबो दिया और वह सभी अत्याचारी[1] थे।
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1. इस आयत में तथा आयत संख्या 52 में व्यक्तियों तथा जातियों के उत्थान और पतन का विधान बताया गया है कि वह स्वयं अपने कर्मों से अपना अपना जीवन बनाती या अपना विनाश करती हैं।


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