और जब हम किसी बस्ती का विनाश करना चाहते हैं, तो उसके सम्पन्न लोगों को आदेश[1] देते हैं, फिर वे उसमें उपद्व करने लगते[2] हैं, तो उसपर यातना की बात सिध्द हो जाती है और हम उसका पूर्णता उनसूलन कर देते हैं।
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1. अर्थात आज्ञा पालन का। 2. अर्थात हमारी आज्ञा का। आयत का भावार्थ यह है कि समाज के सम्पन्न लोगों का दुष्कर्म, अत्याचार और अवैज्ञा पूरी बस्ती के विनाश का कारण बन जाती है।