और जब आप क़ुर्आन पढ़ते हैं, तो हम आपके बीच और उनके बीच, जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते, एक छुपा हुआ आवरण (पर्दा) बना देते[1] हैं।
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1. अर्थात प्रलोक पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुर्आन को समझने की योग्यता खो जाती है।