और आप उनके साथ रहें, जो अपने पालनहार की प्रातः-संध्या बंदगी करते हैं। वे उसकी प्रसन्नता चाहते हैं और आपकी आँखें सांसारिक जीवन की शोभा के लिए[1] उनसे न फिरने पायें और उसकी बात न मानें, जिसके दिल को हमने अपनी याद से निश्चेत कर दिया और उसने मनमानी की और जिसका काम ही उल्लंघन (अवज्ञा करना) है।
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1. भाष्यकारों ने लिखा है कि यह आयत उस समय उतरी जब मुश्रिक क़ुरैश के कुछ प्रमुखों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह माँग की कि आप अपने निर्धन अनुयायियों के साथ न रहें। तो हम आप के पास आ कर आप की बातें सुनेंगे। इस लिये अल्लाह ने आप को आदेश दिया कि इन का आदर किया जाये, ऐसा नहीं होना चाहिये कि इन की उपेक्षा कर के उन धनवानों की बात मानी जाये जो अल्लाह की याद से निश्चेत हैं।


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