अतः आप सहन करें उनकी बातों को तथा अपने पालनहार की पवित्रता का वर्णन उसकी प्रशंसा के साथ करते रहें, सूर्योदय से पहले[1], सुर्यास्त से[2] पहले, रात्रि के क्षणों[3] में और दिन के किनारों[4] में, ताकि आप प्रसन्न हो जायेँ।
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1. अर्थात फ़ज्र की नमाज में। 2. अर्थात अस्र की नमाज़ में। 3. अर्थात इशा की नमाज़ में। 4. अर्थात ज़ुह्र तथा मग़्रिब की नमाज़ में।


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