और न शपथ लें[1] तुममें से धनी और सुखी कि नहीं देंगे समीपवर्तियों तथा निर्धनों को और (उन्हें) जो हिजरत कर गये अल्लाह की राह में और चाहिये कि क्षमा कर दें तथा जाने दें! क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे और अल्लाह अति क्षमी, सहनशील हैं।
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1. आदरणीय मिस्तह़ पुत्र उसासा (रज़ियल्लाहु अन्हु) निर्धन और आदरणीय अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) के समीपवर्ती थे। और वह उन की सहायता किया करते थे। वह भी आदरणीय आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) के विरुध्द आक्षेप में लिप्त हो गये थे। अतः आदरणीय आइशा के निर्दोश होने के बारे में आयतें उतरने के पश्चात् आदरणीय अबू बक्र ने शपथ ली कि अब वह मिस्तह़ की कोई सहायता नहीं करेंगे। उसी पर यह आयत उतरी। और उन्हों ने कहाः निश्चय मैं चाहता हूँ कि अल्लाह मुझे क्षमा कर दे। और पुनः उन की सहायता करने लगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4750)