अन्धे पर कोई दोष नहीं है, न लंगड़े पर कोई दोष[1] है, न रोगी पर कोई दोष है और न स्वयं तुमपर कि खाओ अपने घरों[2] से, अपने बापों के घरों से, अपनी माँओं के धरों से, अपने भाईयों के घरों से, अपनी बहनों के घरों से, अपने चाचाओं के घरों से, अपनी फूफियों के घरों से, अपने मामाओं के घरों से, अपनी मौसियों के घरों से अथवा जिसकी चाबियों के तुम स्वामी[3] हो अथवा अपने मित्रों के घरों से। तुमपर कोई दोष नहीं, एक साथ खाओ या अलग अलग। फिर जब तुम प्रवेश करो घरों में,[4] तो अपनों को सलाम किया करो, एक आशीर्वाद है अल्लाह की ओर से निर्धारित किया हुआ, जो शुभ पवित्र है। इसी प्रकार, अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन करता है, ताकि तुम समझ लो।
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1. इस्लाम से पहले विक्लाँगों के साथ खाने पीने को दोष समझा जाता था जिस का निवारण इस आयत में किया गया है। 2. अपने घरों से अभिप्राय अपने पुत्रों के घर हैं जो अपने ही घर होते हैं। 3. अर्थात जो अपनी अनुपस्थिति में तुम्हें रक्षा के लिये अपने घरों की चाबियाँ दे जायें। 4. अर्थात वह साधरण भोजन जो सब के लिये पकाया गया हो। इस में वह भोजन सम्मिलित नहीं जो किसी विशेष व्यक्ति के लिये तैयार किया गया हो।