और नहीं है ये सांसारिक[1] जीवन, किन्तु मनोरंजन और खेल और परलोक का घर ही वास्तविक जीवन है। क्या ही अच्छा होता, यदि वे जानते!
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1. अर्थात जिस संसारिक जीवन का संबन्ध अल्लाह से न हो तो उस का सुख साम्यिक है। वास्तविक तथा स्थायी जीवन तो परलोक का है। अतः उस के लिये प्रयास करना चाहिये।


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