तथा वह़्यी की गई है आपकी ओर तथा उन (नबियों) की ओर, जो आपसे पूर्व (हुए) कि यदि आपने शिर्क किया, तो अवश्य व्यर्थ हो जायेगा आपका कर्म तथा आप हो जायेंगे[1] क्षतिग्रस्तों में से।
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1. इस आयत का भावार्थ यह है कि यदि मान लिया जाये कि आप के जीवन का अन्त शिर्क पर हुआ, और क्षमा याचना नहीं की तो आप के भी कर्म नष्ट हो जायेंगे। ह़ालाँकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सभी नबी शिर्क से पाक थे। इस लिये कि उन का संदेश ही एकेश्वरवाद और शिर्क का खण्डन है। फिर भी इस में संबोधित नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया है। और यह साधारण नियम बताया गया कि शिर्क के साथ अल्लाह के हाँ कोई कर्म स्वीकार्य नहीं। तथा ऐसे सभी कर्म निष्फल होंगे जो एकेश्वरवाद की आस्था पर आधारित न हों। चाहे वह नबी हो या उस का अनुयायी हो।


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