तथा तुम (पाप करते समय)[1] छुपाते नहीं थे कि कहीं साक्ष्य न दें, तुमपर, तुम्हारे कान, तुम्हारी आँख एवं तुम्हारी खालें। परन्तु, तुम समझते रहे कि अल्लाह नहीं जानता उसमें से अधिक्तर बातों को, जो तुम करते हो।
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1. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहाः यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4816, 4817, 7521)