तथा उसकी निशानियों में से है रात्रि, दिवस, सूर्य तथा चन्द्रमा, तुम सज्दा न करो सूर्य तथा चन्द्रमा को और सज्दा करो उस अल्लाह को, जिसने पैदा किया है उनको, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत (वंदना) करते हो।[1]
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1. अर्थात सच्चा वंदनीय (पूज्य) अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। यह सुर्य, चन्द्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाये हुये हैं। और उसी के अधीन हैं। इस लिये इन को सज्दा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है वह अल्लाह के साथ उस की बनाई हुई चीज़ को उस का साझी बनाता है जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सज्दा करना इबादत है। जो अल्लाह ही के लिये विशेष है। इसी लिये कहा है कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो तो सज्दा भी उसी के लिये करो। उस के सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सज्दा करना उचित हो। क्यों कि सब अल्लाह के बनाये हुये हैं सूर्य हो या कोई मनुष्य। सज्दा आदर के लिये हो या इबादत (वंदना) के लिये। अल्लाह के सिवा किसी को भी सज्दा करना अवैध तथा शिर्क है जिसा का पिरणाम सदैव के लिये नरक है। आयत 38 पूरी कर के सज्दा करें।


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