और यदि अल्लाह चाहता, तो सभी को एक समुदाय[1] बना देता। परन्तु, वह प्रवेश कराता है जिसे चाहे, अपनी दया में तथा अत्याचारियों का कोई संरक्षक तथा सहायक न होगा।
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1. अर्थात एक ही सत्धर्म पर कर देता। किन्तु उस ने प्रत्येक को अपनी इच्छा से सत्य या असत्य को अपनाने की स्वाधीनता दे रखी है। और दोनों का परिणाम बता दिया है।


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