जो आख़िरत (परलोक) की खेती[1] चाहता हो, तो हम उसके लिए उसकी खेती बढ़ा देते हैं और जो संसार की खेती चाहता हो, तो हम उसे उसमें से कुछ दे देते हैं और उसके लिए परलोक में कोई भाग नहीं।
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1. अर्थात जो अपने संसारिक सत्कर्म का प्रतिफल परलोक में चाहता है तो उसे उस का प्रतिफल में दस गुना से सात सौ गुना तक मिलेगा। और जो संसारिक फल का अभिलाषी हो तो जो उस के भाग्य में हो उसे उतना ही मिलेगा और प्रलोक में कुछ नहीं मिलेगा। (इब्ने कसीर)


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