तथा वह मूल पुस्तक[1] में है, हमारे पास, बड़ा उच्च तथा ज्ञान से परिपूर्ण है।
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1. मूल पुस्तक से अभिप्राय लौह़े मह़फ़ूज़ (सुरक्षित पुस्तक) है। जिस से सभी आकाशीय पुस्तकें अलग कर के अवतरित की गई हैं। सूरह वाक़िआ में इसी को "किताबे मक्नून" कहा गया है। सूरह बुरूज में इसे "लौह़े मह़फ़ूज़" कहा गया है। सूरह शुअरा में कहा गया है कि यह अगले लोगों की पुस्तकों में है। सूरह आला में कहा गया है कि यह विषय पहली पुस्तकों में भी अंकित है। सारांश यह है कि क़ुर्आन के इन्कार करने का कोई कारण नहीं। तथा क़ुर्आन का इन्कार सभी पहली पुस्तकों का इन्कार करने के बराबर है।