तो जब (युध्द में) भिड़ जाओ काफ़िरों से, तो गर्दन उड़ाओ, यहाँ तक कि जब कुचल दो उन्हें, तो उन्हें दृढ़ता से बाँधो। फिर उसके बाद या तो उपकार करके छोड़ दो या अर्थदण्ड लेकर। यहाँ तक कि युध्द अपने हथियार रख दे।[1] ये आदेश है और यदि अल्लाह चाहता, तो स्वयं उनसे बदला ले लेता। किन्तु, (ये आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे द्वारा परीक्षा ले और जो मार दिये गये अल्लाह की राह में, तो वह कदापि व्यर्थ नहीं करेगा उनके कर्मों को।
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1. इस्लाम से पहले युध्द के बंदियों को दास बना लिया जाता था किन्तु इस्लाम उन्हें उपकार कर के या अर्थ दणड ले कर मुक्त करने का आदेश देता है। इस आयत में यह संकेत हैं कि इस्लाम जिहाद की अनुमति दूसरों के आक्रमण से रक्षा के लिये देता है।


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