अतः, तुम निर्बल न बनो और न (शत्रु को) संधि की ओर[1] पुकारो तथा तुम ही उच्च रहने वाले हो और अल्लाह तुम्हारे साथ है और वह कदापि व्यर्थ नहीं करेगा तुम्हारे कर्मों को।
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1. आयत का अर्थ यह नहीं कि इस्लाम संधि का विरोधी है। इस का अर्थ यह है कि ऐसी दशा में शत्रु से संधि न करो कि वह तुम्हें निर्बल समझने लगे। बल्कि अपनी शक्ति का लोहा मनवाने के पश्चात् संधि करो। ताकि वह तुम्हें निर्बल समझ कर जैसे चाहें संधि के लिये बाध्य न कर लें।