हे मनुष्यो![1] हमने तुम्हें पैदा किया एक नर तथा नारी से तथा बना दी हैं तुम्हारी जातियाँ तथा प्रजातियाँ, ताकि एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में, तुममें अल्लाह के समीप सबसे अधिक आदरणीय वही है, जो तुममें अल्लाह से सबसे अधिक डरता हो। वास्तव में अल्लाह सब जानने वाला है, सबसे सूचित है।
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1. इस आयत में सभी मनुष्यों को संबोधित कर के यह बताया गया है कि सब जातियों और क़बीलों के मूल माँ-बाप एक ही हैं। इस लिये वर्ग वर्ण तथा जाति और देश पर गर्व और भेद भाव करना उचित नहीं। जिस से आपस में घिरना पैदा होती है। इस्लाम की सामाजिक व्यवस्था में कोई भेग भाव नहीं है और न ऊँच नीच का कोई विचार है और न जात पात का तथा न कोई छुआ छूत है। नमाज़ में सब एक साथ खड़े होते हैं। विवाह में भी कोई वर्ग वर्ण और जाति का भेद भाव नहीं। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने क़ुरैशी जाति की स्त्री ज़ैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) का विवाह अपने मुक्त किये हुये दास ज़ैद (रज़ियल्लाहु अन्हु) से किया था। और जब उन्होंने उसे तलाक दे दी तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ज़ैनब से विवाह कर लिया। इस लिये कोई अपने को सय्यद कहते हुये अपनी पुत्री का विवाहि किसी व्यक्ति से इस लिये न करे कि वह सय्यद नहीं है तो यह जाहिली युग का विचार समझा जायेगा। जिस से इस्लाम का कोई संबन्ध नहीं है। बल्कि इस्लाम ने इस का खण्डन किया है। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के युग में अफरीका के एक आदमी बिलाल (रज़ियल्लाहु अन्हु) तथा रोम के एक आदमी सुहैब (रज़ियल्लाहु अन्हु) बिना रंग और देश के भेद भाव के एक साथ रहते थे। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः अल्लाह ने मुझे उपदेश भेजा है कि आपस में झुक कर रहो। और कोई किसी पर गर्व ने करे। और न कोई किसी पर अत्याचार करे। (सह़ीह़ मुस्लिमः 2865) आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः लोग अपने मरे हुए बापों पर गर्व ने करे। अन्यथा वे उस कीड़े से हीन हो जायेंगे जो अपनी नाक से गंदगी ढकेलता है। अल्लाह ने जाहिलिय्यत का पक्षपात और बापों पर गर्व को दूर कर दिया। अब या तो सदाचारी ईमान वाला है या कुकर्मी अभागा है। सभी आदम की संतान हैं। (सुनन अबू दाऊदः 5116 इस ह़दीस की सनद ह़सन है।) यदि आज भी इस्लाम की इस व्यवस्था और विचार को मान लिया जाये तो पूरे विश्व में शान्ति तथा मानवता का राज्य हो जायेगा।


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