उसीसे माँगते हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं। प्रत्येक दिन वह एक नये कार्य में है।[1]
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1. अर्थात वह अपनी उत्पत्ति की आवश्यक्तायें पूरी करता, प्रार्थनायें सुनता, सहायता करता, रोगी को निरोग करता, अपनी दया प्रदान करता, तथा अपमान-सम्मान और विजय-प्राजय देता और अगणित कार्य करता है।