और यदि तुम डरो कि अनाथ (बालिकाओं) के विषय[1] में न्याय नहीं कर सकोगे, तो नारियों में से जो भी तुम्हें भायें, दो से, तीन से, चार तक से विवाह कर लो और यदि डरो कि (उनके बीच) न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही से करो अथवा जो तुम्हारे स्वामित्व[2] में हो, उसीपर बस करो। ये अधिक समीप है कि अन्याय न करो।
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1. अरब में इस्लाम से पूर्व अनाथ बालिका का संरक्षक यदि उस के खजूर का बाग़ हो, तो उस पर अधिकार रखने के लिये उस से विवाह कर लेता था। जब उस में उसे कोई रूचि नहीं होती थी। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4573) 2. अर्थात युध्द में बंदी बनाई गई दासी।


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