क्या आपने नहीं देखा उन्हें, जो रोके गये हैं काना-फूसी[1] से? फिर (भी) वही करते हैं जिससे रोके गये हैं तथा काना-फूसी करते हैं पाप और अत्याचार तथा रसूल की अवज्ञा की और वे जब आपके पास आते हैं, तो आपको ऐसे (शब्द से) सलाम करते हैं, जिससे आपपर सलाम नहीं भेजा अल्लाह ने तथा कहते हैं अपने मनों में: क्यों अल्लाह हमें यातना नहीं देता उसपर जो हम कहते[1] हैं? पर्याप्त है उन्हें नरक, जिसमें वे प्रवेश करेंगे, तो बुरा है उनका ठिकाना।
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1. इन से अभिप्राय मुनाफ़िक़ हैं। क्योंकि उन की काना फूसी बुराई के लिये होती थी। (देखियेः सूरह निसा, आयतः 144)। 2. मुनाफ़िक़ और यहूदी जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सेवा में आते तो "अस्सलामो अलैकुम" (अनुवादः आप पर सलाम और शान्ति हो) की जगह "अस्सामो अलैकुम" (अनुवादः आप पर मौत आये।) कहते थे। और अपने मन में यह सोचते थे कि यदि आप अल्लाह के सच्चे रसूल होते तो हमारे इस दुराचार के कारण हम पर यातना आ जाती। और जब कोई यातना नहीं आई तो आप अल्लाह के रसूल नहीं हो सकते। ह़दीस में है कि यहूदी तुम को सलाम करें तो वह "अस्सामो अलैका" कहते हैं, तो तुम "व अलैका" कहो। अर्थात और तुम पर भी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 6257, सह़ीह़ मुस्लिमः 2164)।


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