हे ईमान वालो! तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) नहीं कि बलपूर्वक स्त्रियों के वारिस बन जाओ[1] तथा उन्हें इसलिए न रोको कि उन्हें जो दिया हो, उसमें से कुछ मार लो। परन्तु ये कि खुली बुराई कर जायेँ तथा उनके साथ उचित[2] व्यवहार से रहो। फिर यदि वे तुम्हें अप्रिय लगें, तो संभव है कि तुम किसी चीज़ को अप्रिय समझो और अल्लाह ने उसमें बड़ी भलाई[3] रख दी हो।
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1. ह़दीस में है कि जब कोई मर जाता तो उस के वारिस उस की पत्नी पर भी अधिकार कर लेते थे। इसी को रोकने के लिये यह आयत उतरी। (सह़ीह़ वुख़ारीः4579) 2. ह़दीस में है कि पूरा ईमान उस में है जो सुशील हो। और भला वह है जो अपनी पत्नियों के लिये भला हो। (तिर्मिज़ीः1162) 3. अर्थात पत्नि किसी कारण न भाये तो तुरन्त तलाक़ न दे दो, बल्कि धैर्य से काम लो।


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