तथा उन लोगों[1] के लिए (भी), जिन्होंने आवास बना लिया इस घर (मदीना) को तथा उन (मुहाजिरों के आने) से पहले ईमान लाये, वे प्रेम करते हैं उनसे, जो हिजरत करके आ गये उनके यहाँ और वे नहीं पाते अपने दिलों में कोई आवश्यक्ता उसकी, जो उन्हें दिया जाये और प्राथमिक्ता देते हैं दूसरों को अपने ऊपर, चाहे स्वयं भूखे[1] हों और जो बचा लिये गये अपने मन की तंगी से, तो वही सफल होने वाले हैं।
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1. इस से अभिप्राय मदीना के निवासी अन्सार हैं। जो मुहाजिरीन के मदीना में आने से पहले ईमान लाये थे। इस का यह अर्थ नहीं है कि वह मुहाजिरीन से पहले ईमान लाये थे। 2. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास एक अतिथि आया और कहाः हे अल्लाह के रसूल! मैं भूखा हूँ। आप ने अपनी पत्नियों के पास भेजा तो वहाँ कुछ नहीं था। एक अन्सारी उसे घर ले गये। घर पहुँचे तो पत्नि ने कहाः घर में केवल बच्चों का खाना है। उन्होंने परस्पर प्रामर्श किया कि बच्चों को बहला कर सुला दिया जाये। तथा पत्नी से कहा कि जब अतिथि खाने लगे तो तुम दीप बुझा देना। उस ने ऐसा ही किया। सब भूखे सो गये और अतिथि को खिला दिया। जब वह अन्सारी भोर में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास पहुँचे तो आप ने कहाः अमुक पुरुष (अबू तल्ह़ा) और अमुक स्त्री (उम्मे सुलैम) से अल्लाह प्रसन्न हो गया। और उस ने यह आयत उतारी है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4889)


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