और उन्हें (निर्धारित अवधि में) रखो, जहाँ तुम रहते हो, अपनी शक्ति अनुसार और उन्हें हानि न पहुँचाओ, उन्हें तंग करने के लिए और यदि वे गर्भवती हों, तो उनपर ख़र्च करो, यहाँ तक कि प्रसव हो जाये। फिर यदि दूध पिलायें तुम्हारे (शिशु) के लिए, तो उन्हें उनका पारिश्रमिक दो और विचार-विमर्श कर लो, आपस में उचित रूप[1] से और यदि तुम दोनों में तनाव हो जाये, तो दूध पिलायेगी उसे कोई दूसरी स्त्री।
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1. अर्थात परिश्रामिक के विषय में।


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