पुरुष स्त्रियों के व्यवस्थापक[1] हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर प्रधानता दी है तथा इस कारण कि उन्होंने अपने धनों में से (उनपर) ख़र्च किया है। अतः, सदाचारी स्त्रियाँ वो हैं, जो आज्ञाकारी तथा उनकी (अर्थात, पतियों की) अनुपस्थिति में अल्लाह की रक्षा में उनके अधिकारों की रक्षा करती हों। फिर तुम्हें जिनकी अवज्ञा का डर हो, तो उन्हें समझाओ और शयनागारों (सोने के स्थानों) में उनसे अलग हो जाओ तथा उन्हें मारो। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानें, तो उनपर अत्याचार का बहाना न खोजो और अल्लाह सबसे ऊपर, सबसे बड़ा है।
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1. आयत का भावार्थ यह है कि परिवारिक जीवन के प्रबंध के लिये एक प्रबंधक होना आवश्यक है। और इस प्रबंध तथा व्यवस्था का भार पुरुष पर रखा गया है। जो कोई विशेषता नहीं, बल्कि एक भार है। इस का यह अर्थ नहीं कि जन्म से पुरुष की स्त्री पर कोई विशेषता है। प्रथम आयत में यह आदेश दिया गया है कि यदि पत्नी पति की अनुगामी न हो, तो वह उसे समझाये। परन्तु यदि दोष पुरुष का हो तो दोनों के बीच मध्यस्ता द्वारा संधि कराने की प्रेरणा दी गयी है।