फिर यदि उनके अपने ही करतूतों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़े, तो फिर आपके पास आ कर शपथ लेते हैं कि हमने[1] तो केवल भलाई तथा (दोनों पक्षों में) मेल कराना चाहा था।
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1. आयत का भावार्थ यह है कि मुनाफ़िक़ ईमान का दावा तो करते थे, परन्तु अपने विवाद चुकाने के लिये इस्लाम के विरोधियों के पास जाते, फिर जब कभी उन की दो रंगी पकड़ी जाती तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आ कर मिथ्या शपथ लेते। और यह कहते कि हम केवल विवाद सुलझाने के लिये उन के पास चले गये थे। (इब्ने कसीर)


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