कदापि नहीं[1], जब पहुँचेगी प्राण हंसलियों (गलों) तक।
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1. अर्थात यह विचार सह़ीह़ नहीं कि मौत के पश्चात् सड़-गल जायेंगे और दोबारा जीवित नहीं किये जायेंगे। क्योंकि आत्मा रह जाती है जो मौत के साथ ही अपने पालनहार की ओर चली जाती है।


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