क्या मनुष्य समझता है कि वह छोड़ दिया जायेगा व्यर्थ?[1]
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1. अर्थात न उसे किसी बात का आदेश दिया जायेगा और न रोका जायेगा और न उस से कर्मों का ह़िसाब लिया जायेगा।


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