तुम तो उसे सावधान करने के लिए हो, जो उससे डरता है।[1]
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1. (45) इस आयत में कहा गया है कि (हे नबी!) सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आप का दायित्व मात्र उस दिन से सावधान करना है। धर्म बलपूर्वक मनवाने के लिये नहीं। जो नहीं मानेगा उसे स्वयं उस दिन समझ में आ जायेगा कि उस ने क्षण भर के संसारिक जीवन के स्वार्थ के लिये अपना स्थायी सुख खो दिया। और उस समय पछतावे का कुछ लाभ नहीं होगा।