तुम उसकी ओर ध्यान नहीं देते।[1]
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1. (1-10) भावार्थ यह है कि सत्य के प्रचारक का यह कर्तव्य है कि जो सत्य की खोज में हो भले ही वह दरिद्र हो उसी के सुधार पर ध्यान दे। और जो अभिमान के कारण सत्य की परवाह नहीं करते उन के पीछे समय न गवायें। आप का यह दायित्व भी नहीं है कि उन्हें अपनी बात मनवा दें।


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