वही काफ़िर और कुकर्मी लोग हैं।[1]
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1. (33-42) इन आयतों का भावार्थ यह है कि संसार में किसी पर कोई आपदा आती है तो उस के अपने लोग उस की सहायता और रक्षा करते हैं। परन्तु प्रलय के दिन सब को अपनी अपनी पड़ी होगी और उस के कर्म ही उस की रक्षा करेंगे।


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