तुम्हें क्या हुआ है कि मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) के बारे में दो पक्ष[1] बन गये हो, जबकि अल्लाह ने उनके कुकर्मों के कारण उन्हें ओंधा कर दिया है। क्या तुम उसे सुपथ दर्शा देना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने कुपथ कर दिया हो? और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो तुम उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते।
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1. मक्का वासियों में कुछ अपने स्वार्थ के लिये मौखिक मुसलमान हो गये थे, और जब युध्द आरंभ हुआ तो उन के बारे में मुसलमानों के दो विचार हो गये। कुछ उन्हें अपना मित्र और कुछ उन्हें अपना शत्रु समझ रहे थे। अल्लाह ने यहाँ बता दिया कि वह लोग मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) हैं। जब तक मक्का से हिजरत कर के मदीना में न आ जायें, और शत्रु ही के साथ रह जायें, उन्हें भी शत्रु समझा जायेगा। यह वह मुनाफ़िक़ नहीं हैं जिन की चर्चा पहले की गयी है, ये मक्का के विशेष मुनाफ़िक़ हैं, जिन से युध्द की स्थिति में कोई मित्रता की जा सकती थी, और न ही उन से कोई संबंध रखा जा सकता था।


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