निःसंदेह वे लोग, जिनके प्राण फ़रिश्ते निकालते हैं, इस दशा में कि वे अपने ऊपर (कुफ़्र के देश में रहकर) अत्याचार करने वाले हों, तो उनसे कहते हैं, तुम किस चीज़ में थे? वे कहते हैं कि हम धरती में विवश थे। तब फ़रिश्ते कहते हैं, क्या अल्लाह की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत कर[1] जाते? तो इन्हीं का आवास नरक है और वह क्या ही बुरा स्थान है!
____________________
1. जब सत्य के विरोधियों के अत्याचार से विवश हो कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना हिजरत (प्रस्थान) कर गये, तो अरब में दो प्रकार के देश हो गये- मदीन दारुल हिजरत (प्रवास गृह) था जिस में मुसलमान हिजरत कर के एकत्र हो गये। तथा दारुल ह़र्ब। अर्थात वह क्षेत्र जो शत्रुओं के नियंत्रण में था। और जिस का केंद्र मक्का था। यहाँ जो मुसलमान थे वह अपनी आस्था तथा धार्मिक कर्म से वंचित थे। उन्हे शत्रु का अत्याचार सहना पड़ता था। इस लिये उन्हें यह आदेश दिया गया था कि मदीना हिजरत कर जायें। और यदि वह शक्ति रखते हुये हिजरत नहीं करेंगे, तो अपने इस आलस्य के लिये उत्तर दायी होंगे। इस के पश्चात् आगामी आयत में उन की चर्चा की जा रही है, जो हिजरत करने से विवश थे। मक्का से मदीना हिजरत करने का यह आदेश मक्का की विजय सन् 8 हिजरी के पश्चात् निरस्त कर दिया गया। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में कुछ मुसलमान काफ़िरों की संख्या बढ़ाने के लिये उन के साथ हो जाते थे। और तीर या तलवार लगने से मारे जाते थे, उन्हीं के बारे में यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4596)


الصفحة التالية
Icon