फिर उसे (सुखा कर) कूड़ा बना दिया।[1]
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1. (4-5) इन आयतों में बताया गया है कि प्रत्येक कार्य अनुक्रम से धीरे धीरे होते हैं। धरती के पौधे धीरे धीरे गुंजान और हरे भरे होते हैं। ऐसे ही मानवीय योग्तायें भी धीरे धीरे पूरी होती हैं।


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