जो न मोटा करेगी और न भूख दूर करेगी।[1]
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1. (1-7) इन आयतों में प्रथम संसारिक स्वार्थ में मग्न इन्सानों को एक प्रश्न द्वारा सावधान किया गया है कि उसे उस समय की सूचना है जब एक आपदा समस्त विश्व पर छा जायेगा? फिर इसी के साथ यह विवरण भी दिया गया है कि उस समय इन्सानों के दो भेद हो जायेंगे, और दोनों के प्रतिफल भी भिन्न होंगेः एक नरक में तथा दूसरा स्वर्ग में जायेगा। तीसरी आयत में "नासिबह" का शब्द आया है जिस का अर्थ है, थक कर चूर हो जाना, अर्थात काफ़िरों को क़्यामत के दिन इतनी कड़ी यातना दी जायेगी कि उन की दशा बहुत ख़राब हो जायेगी। और वे थके-थके से दिखाई देंगे। इस का दूसरा अर्थ यह भी है कि उन्हों ने संसार में बहुत से कर्म किये होंगे परन्तु वह सत्य धर्म के अनुसार नहीं होंगे, इस लिये वे पूजा अर्चना और कड़ी तपस्या कर के भी नरक में जायेंगे, इस लिये कि सत्य आस्था के बिना कोई कर्म मान्य नहीं होगा।