(हे नबी!) हमने आपकी ओर इस पुस्तक (क़ुर्आन) को सत्य के साथ उतारा है, ताकि आप, लोगों के बीच उसके अनुसार निर्णय करें, जो अल्लाह ने आपको बताया है, और आप विश्वासघातियों के पक्षधर न[1] बनें।
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1. यहाँ से, अर्थात आयत 105 से 113 तक, के विषय में भाष्यकारों ने लिखा है कि एक व्यक्ति ने एक अन्सारी की कवच (ज़िरह) चुरा ली। और जब देखा कि उस का भेद खुल जायेगा, तो उस का आरोप एक यहूदी पर लगा दिया। और उस के क़बीले के लोग भी उस के पक्षधर हो गये। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये, और कहा कि आप इसे निर्दोष घोषित कर दें। और उन की बातों के कारण समीप था कि आप उसे निर्दोष घोषित कर के यहूदी को अपराधी बना देते कि आप को सावधान करने के लिये यह आयतें उतरीं। (इब्ने जरीर) इन आयतों का साधारण भावार्थ यह है कि मुसलमान न्यायधीश को चाहीये कि किसी पक्ष का इस लिये पक्षपात न करे कि वह मुसलमान है। और दूसरा मुसलमान नहीं है, बल्कि उसे हर ह़ाल में निष्पक्ष हो कर न्याय करना चाहीये।


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