वे (अपने करतूत) लोगों सो छुपा सकते हैं,परन्तु अल्लाह से नहीं छुपा सकते और वह उनके साथ होता है, जब वे रात में उस बात का परामर्श करते हैं, जिससे वह प्रसन्न नहीं[1] होता तथा अल्लाह उसे घेरे हुए है, जो वे कर रहे हैं।
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1. आयत का भावार्थ यह है कि मुसलमानों को अपना सहधर्मी अथवा अपनी जाति या परिवार का होने के कारण किसी अपराधी का पक्षपात नहीं करना चाहिये। क्योंकि संसार न जाने, परन्तु अल्लाह तो जानता है कि कौन अपराधी है, कौन नहीं।


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