और धन से बड़ा मोह रखते हो।[1]
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1. (15-20) इन आयतों में समाज की साधारण नैतिक स्थिति की परीक्षा (जायज़ा) ली गई, और भौतिकवादी विचार की आलोचना की गई है जो मात्र सांसारिक धन और मान मर्य़ादा को सम्मान तथा अपमान का पैमाना समझता है और यह भूल गया है कि न धनी होना कोई पुरस्कार है और न निर्धन होना कोई दण्ड है। अल्लाह दोनों स्थितियों में मानव जाति (इन्सान) की परीक्षा ले रहा है। फिर यह बात किसी के बस में हो तो दूसरे का धन भी हड़प कर जाये, क्या ऐसा करना कुकर्म नहीं जिस का ह़िसाब लिया जाये?