तो हम उसके लिए कठिनाई को प्राप्त करना सरल कर देंगे।[1]
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1. (5-10) इन आयतों में दोनों भिन्न कर्मों के प्रभाव का वर्णन है कि कोई अपना धन भलाई में लगाता है तथा अल्लाह से डरता है और भलाई को मानता है। सत्य आस्था, स्वभाव और सत्कर्म का पालन करता है। जिस का प्रभाव यह होता है कि अल्लाह उस के लिये सत्कर्मों का मार्ग सरल कर देता है। और उस में पाप करने तथा स्वार्थ के लिये अवैध धन अर्जन की भावना नहीं रह जाती। ऐसे व्यक्ति के लिये दोनों लोक में सुख है। दूसरा वह होता है जो धन का लोभी, तथा अल्लाह से निश्चिन्त होता है और भलाई को नहीं मानता। जिस का प्रभाव यह होता है कि उस का स्वभाव ऐसा बन जाता है कि उसे बुराई का मार्ग सरल लगने लगता है। तथा अपने स्वार्थ और मनोकामना की पूर्ति के लिये प्रयास करता है। फिर इस बात को इस वाक्य पर समाप्त कर दिया गया है कि धन के लिये वह जान देता है परन्तु वह उसे अपने साथ ले कर नहीं जायेगा। फिर वह उस के किस काम आयेगा?


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