और पर्वत, धुनी हुई ऊन के समान उडेंगे।[1]
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1. (4-5) इन दोनों आयतों में उस स्थिति को दर्शाया गया है जो उस समय लोगों और पर्वतों की होगी।
और पर्वत, धुनी हुई ऊन के समान उडेंगे।[1]
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1. (4-5) इन दोनों आयतों में उस स्थिति को दर्शाया गया है जो उस समय लोगों और पर्वतों की होगी।