जो जिन्नों में से है और मनुष्यों में से भी।[1]
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1. (4-6) आयत संख्या 4 में 'वस्वास' शब्द का प्रयोग हुआ है। जिस का अर्थ है दिलों में ऐसी बुरी बातें डान देना कि जिस के दिल में डाली जा रही हों उसे उस का ज्ञान भी न हो। और इसी प्रकार आयत संख्या 4 में 'ख़न्नास' का शब्द प्रोग हुआ है। जिस का अर्थ है सुकड़ जाना, छुप जाना, पीछे हट जाना, धीरे धीरे किसी को बुराई के लिये तैयार करना आदि। अर्थात दिलों में भ्रम डालने वाला, और सत्य के विरुध्द मन में बुरी भावनायें उत्पन्न करने वाला। चाहे वह जिन्नों में से हो, अथवा मनुष्यों में से हो। इन सब की बुराईयों से हम अल्लाह की शरण लेते हैं जो हमारा स्वामी और सच्चा पूज्य है।


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