वस्तुतः, जो ईमान लाये तथा जो यहूदी हुए और नसारा (ईसाई) तथा साबी, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा और सत्कर्म करेगा, उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न ही वे उदासीन होंगे।[1]
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1. इस आयत में यहूदियों के इस भ्रम का खण्डन किया गया है कि मुक्ति केवल उन्हीं के गिरोह के लिये है। आयत का भावार्थ यह है कि इन सभी धर्मों के अनुयायी अपने समय में सत्य आस्था एवं सत्कर्म के कारण मुक्ति के योग्य थे, परन्तु अब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगमन के पश्चात् आप पर ईमान लाना तथा आप की शिक्षाओं को मानना मुक्ति के लिये अनिवार्य है।


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