और (हे नबी!) हमने आपकी ओर सत्य पर आधारित पुस्तक (क़ुर्आन) उतार दी, जो अपने पूर्व की पुस्तकों को सच बताने वाली तथा संरक्षक[1] है, अतः आप लोगों का निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है तथा उनकी मनमानी पर उस सत्य से विमुख होकर न चलें, जो आपके पास आया है। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक धर्म विधान तथा एक कार्य प्रणाली बना दिया[2] था और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक ही समुदाय बना देता, परन्तु उसने जो कुछ दिया है, उसमें तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है। अतः, भलाईयों में एक-दूसरे से अग्रसर होने का प्रयास करो[3], अल्लाह ही की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिन बातों में तुम विभेद करते रहे।
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1. संरक्षक होने का अर्थ यह है कि क़ुर्आन अपने पूर्व की धर्म पुस्तकों का केवल पुष्टिकर ही नहीं, कसौटि (परख) भी है। अतः आदि पुस्तकों में जो भी बात क़ुर्आन के विरुध्द होगी, वह सत्य नहीं परिवर्तित होगी, सत्य वही होगी जो अल्लाह की अन्तिम किताब क़ुरआन पाक के अनुकूल है। 2. यहाँ यह प्रश्न उठता है कि जब तौरात तथा इंजील और क़ुर्आन सब एक ही सत्य लाये हैं, तो फिर इन के धर्म विधानों तथा कार्य प्रणाली में अन्तर क्यों है? क़ुर्आन उस का उत्तर देता है कि एक चीज़ मूल धर्म है, अर्थात एकेश्वरवाद तथा सत्कर्म का नियम, और दूसरी चीज़ धर्म विधान तथा कार्य प्रणाली है, जिस के अनुसार जीवन व्यतीत किया जाये, तो मूल धर्म तो एक ही है, परन्तु समय और स्थितियों के अनुसार कार्य प्रणाली में अन्तर होता रहा है, क्यों कि प्रत्येक युग की स्थितियाँ एक समान नहीं थीं, और यह मूल धर्म का अन्तर नहीं, कार्य प्रणाली का अन्तर हुआ। अतः अब समय तथा परिस्थतियाँ बदल जाने के पशचात् क़ुर्आन जो धर्म विधान तथा कार्य प्रणाली परस्तुत कर रहा है, वही सत्धर्म है। 3. अर्थात क़ुर्आन के आदेशों का पालन करने में।


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