उनपर जो ईमान लाये तथा सदाचार करते रहे, उसमें कोई दोष नहीं, जो (निषेधाज्ञा से पहले) खा लिया, जब वे अल्लाह से डरते रहे, ईमान पर स्थिर रहे, सत्कर्म करते रहे, फिर डरते और सत्कर्म करते रहे, फिर (रोके गये तो) अल्लाह से डरे और सदाचार करते रहे। अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता[1] है।
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1. आयत का भावार्थ यह है कि जिन्हों ने वर्जित चीज़ों का निषेधाज्ञा से पहले प्रयोग किया, फिर जब भी उन को अवैध किया गया तो उन से रुक गये, उन पर कोई दोष नहीं। सह़ीह़ ह़दीस में है कि जब शराब वर्जित की गयी तो कुछ लोगों ने कहा कि कुछ लोग इस स्थिति में मारे गये कि वह शराब पिये हुये थे, उसी पर यह आयत उतरी। (बुख़ारीः4620) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः जो भी नशा लाये, वह मदिरा और अवैध है। (सह़ीह़ बुख़ारीः2003) और इस्लाम में उस का दण्ड अस्सी कोड़े हैं। (बुख़ारीः6779)


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