आकाशों तथा धरती और उनमें जो कुछ है, सबका राज्य अल्लाह ही का[1] है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
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1. आयत 116 से अब तक की आयतों का सारांश यह है कि अल्लाह ने पहले अपने वह पुरस्कार याद दिलाये जो ईसा अलैहिस्सलाम पर किये। फिर कहा कि सत्य की शिक्षाओं के होते तेरे अनुयायियों ने क्यों तुझे और तेरी माता को पूज्य बना लिया? इस पर ईसा अलैहिस्सलाम कहेंगे कि मैं इस से निर्दोष हूँ। अभिप्राय यह है कि सभी नबियों ने एकेश्वरवाद तथा सत्कर्म की शिक्षा दी। परन्तु उन के अनुयायियों ने उन्हीं को पूज्य बना लिया। इस लिये इस की भार अनुयायियों और वे जिस की पूजा कर रहे हैं, उन पर है। वह स्वयं इस से निर्दोष हैं।


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