और उन मुश्रिकों में से कुछ आपकी बात ध्यान से सुनते हैं और (वास्तव में) हमने उनके दिलों पर पर्दे (आवरण) डाल रखे हैं कि बात न समझें[1] और उनके कान भारी कर दिये हैं, यदि वे (सत्य के) प्रत्येक लक्षण देख लें, तब भी उसपर ईमान नहीं लायेंगे, यहाँ तक कि जब वे आपके पास आकर झगड़ते हैं, जो काफ़िर हैं, तो वे कहते हैं कि ये तो पूर्वजों की कथायें हैं।
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1. न समझने तथा न सुनने का अर्थ यह है कि उस से प्रभावित नहीं होते, क्यों कि कुफ़्र तथा निफ़ाक़ के कारण सत्य से प्रभावित होने की क्षमता खो जाती है।