क्या तुम आशा रखते हो कि (यहूदी) तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें एक गिरोह ऐसा था, जो अल्लाह की वाणी (तौरात) को सुनता था और समझ जाने के बाद जान-बूझ कर उसमें परिवर्तण कर देता था?
क्या तुम आशा रखते हो कि (यहूदी) तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें एक गिरोह ऐसा था, जो अल्लाह की वाणी (तौरात) को सुनता था और समझ जाने के बाद जान-बूझ कर उसमें परिवर्तण कर देता था?