तथा सांसारिक जीवन एक खेल और मनोरंजन[1] है तथा परलोक का घर ही उत्तम[2] है, उनके लिए जो अल्लाह से डरते हों, तो क्या तुम समझते[3] नहीं हो?
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1. अर्थात साम्यिक और अस्थायी है। 2. अर्थात स्थायी है। 3. आयत का भावार्थ यह है कि यदि कर्मों के फल के लिये कोई दूसरा जीवन न हो, तो संसारिक जीवन एक मनोरंजन और खेल से अधिक कुछ नहीं रह जायेगा। तो क्या यह संसारिक व्यवस्था इसी लिये की गई है कि कुछ दिनों खेलो और फिर समाप्त हो जाये? यह बात तो समझ-बूझ का निर्णय नहीं हो सकती। अतः एक दूसरे जीवन का होना ही समझ-बूझ का निर्णय है।