(हे नबी!) इन (मिश्रणवादियों) से कहिए कि किसने अल्लाह की उस शोभा को ह़राम (वर्जित) किया है,[1] जिसे उसने अपने सेवकों के लिए निकाला है? तथा स्वच्छ जीविकाओं को? आप कह दें: ये सांसारिक जीवन में उनके लिए (उचित) है, जो ईमान लाये तथा प्रलय के दिन उन्हीं के लिए विशेष[2] है। इसी प्रकार, हम अपनी आयतों का सविस्तार वर्णन उनके लिए करते हैं, जो ज्ञान रखते हों।
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1. इस आयत में सन्यास का खण्डन किया गया है कि जीवन के सुखों तथा शोभाओं से लभान्वित होना धर्म के विरुध्द नहीं है। इन सब से लाभान्वित होने ही में अल्लाह की प्रसन्नता है। नग्न रहना तथा संसारिक सुखों से वंचित हो जाना सत्धर्म नहीं है। धर्म की यह शिक्षा है कि अपनी शोभाओं से सुसज्जित हो कर अल्लाह की वंदना और उपासना करो। 2. एक बार नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से कहाः क्या तुम प्रसन्न नहीं हो कि संसार का काफ़िरों के लिये है और परलोक हमारे लिये। (बुख़ारीः 2468, मुस्लिमः 1479)