وقد أعاد الله تعالى ذكر هذه الحجارة فقال: ﴿لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِنْ طِينٍ﴾ فقد سمَّى للعرب ما عني بسجيل، وهذا القول اختيار الفراء (١)، وابن قتيبة (٢) قالا: ﴿مِنْ سِجِّيلٍ﴾ من طين قد طبخ حتى صار كالآجر فهو (سنك كل) بالفارسية، ونحو هذا قال الليث (٣) في تفسير السجيل: إنه حجارة كالمدر وهو دخيل معرب، وقال الضحاك (٤): يعني: الآجر.
وقال الحسن (٥): كأن أصل الحجارة طينًا، فشددت. وهذه الأقوال كلها سواء.
وقال ابن زيد (٦): ﴿مِنْ سِجِّيلٍ﴾ أي: من السماء الدنيا وهي تسمى سجيل.
وقال عكرمة (٧): هو بحر في الهواء معلق بين الأرض والسماء منه أنزلت الحجارة.
وحكى الزجاج (٨) عن بعضهم (٩) أنه فعيل من أسجلته أي: أرسلته،
(١) "معاني القرآن" ٢/ ٢٤.
(٢) "مشكل القرآن وغريبه" ١/ ٢١٢.
(٣) "اللسان" (سجل) ٤/ ١٩٤٦.
(٤) الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، "زاد المسير" ٤/ ١٤٤، البغوي ٤/ ١٩٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٥) الطبري ١٢/ ٩٥، الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، البغوي ٤/ ١٩٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٦) الطبري ١٢/ ٩٤، الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، "زاد المسير" ٤/ ١٤٤، البغوي ٤/ ١٩٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٧) الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، "زاد المسير" ٤/ ١٤٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٨) "معاني القرآن وإعرابه" ٣/ ٧١.
(٩) ساقط من (ي).
(٢) "مشكل القرآن وغريبه" ١/ ٢١٢.
(٣) "اللسان" (سجل) ٤/ ١٩٤٦.
(٤) الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، "زاد المسير" ٤/ ١٤٤، البغوي ٤/ ١٩٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٥) الطبري ١٢/ ٩٥، الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، البغوي ٤/ ١٩٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٦) الطبري ١٢/ ٩٤، الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، "زاد المسير" ٤/ ١٤٤، البغوي ٤/ ١٩٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٧) الثعلبي ٧/ ٥٣ أ، "زاد المسير" ٤/ ١٤٤، القرطبي ٩/ ٨٢.
(٨) "معاني القرآن وإعرابه" ٣/ ٧١.
(٩) ساقط من (ي).