हमने प्रस्तुत किया अमानत[1] को आकाशों, धरती एवं पर्वतों पर, तो उनसबने इन्कार कर दिया उसका भार उठाने से तथा डर गये उससे। किन्तु, उसका भार ले लिया मनुष्य ने। वास्तव में, वह बड़ा अत्याचारी,[2] अज्ञान है।
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1. अमानत से अभिप्राय, धार्मिक नियम हैं जिन के पालन का दायित्व तथा भार अल्लाह ने मनुष्य पर रखा है। और उस में उन का पालन करने की योग्यता रखी है जो योग्यता आकाशों तथा धरती और पर्वतों को नहीं दी है। 2. अर्थात इस अमानत का भार ले कर भी अपने दायित्व को पूरा न कर के स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करता है।